Wednesday, August 24, 2011

कभी कभी.....

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है,
कि शायद तू मेरी कभी थी ही नहीं,

तेरा वो मुस्कुरा, नज़रें झुकाना, शर्मा के मेरी बाहों में आना,
वो सब एक छलावा था , एक धोखा था,
जिसको मैं सच समझता रहा,
तेरी बातों में, उन मुलाकातों में उलझता रहा,

तू शायद कभी मेरी थी ही नहीं,
वो तो मैं ही था जो तुझे अपना समझता रहा,

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है,
कि काश ये सब हकीकत में होता,
मैं तेरे साथ होता, तेरे पास, 
हांथों में हाथ होते, लफ़्ज़ों पे बात...

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है,
कि  ना  जाने  क्यूँ  झूठे  प्यार में खुद  को भुलाया,
एक बेवफा  कि खातिर  खुद को रुलाया,
जहां लगा तुझको  ज़रुरत  है मेरी,
तुझे रोशन  किया, चाहे  खुद को जलाया,

काश मेरी तुझसे  मुलाकात  ना होती,
काश कभी उस  ढंग  से, कुछ बात ना होती,
काश तेरे साथ ना चला  होता दिन  भर ,
काश तेरे जाने के बाद, ऐसी  घनी  रात  ना होती...

अब तो ये अन्धकार है, जिसमे जीते जाना है,
दर्द का घूँट, हर पल पीते जाना है,
चाहे जितना ही खुरेदे इन ज़ख्मों को तू,
हर बार मुझे बस, इन होंठों को सीते जाना है...

कुछ देर  तड़प  कर रह जाऊँगा,
कुछ दिनों बाद, आंसुओं में बह जाऊँगा,
कुछ महीनों का वक़्त लगेगा शायद,
तेरी ज़िन्दगी में सिर्फ एक याद बनकर रह जाऊँगा... 

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